घंटाघर के रामलीला हाल में मंडली बेचैन बैठी थी। लगभग 17-18 लोग थे मंडली में। सबके मन में बस यही उथल पुथल मची थी कि रामलीला में राम का किरदार कौन निभाएगा? वैसे तो ड्रामेबाजों में टैलेंट की कोई कमी नही थी पर कुछ ऐसे थे जो हुनर के साथ साथ थोड़ा पऊवा भी रखते थे। पऊवा मल्लब जुगाड़। राम के रोल के लिए सबने बारी बारी अपना आडीशन दिया और राम सबको उनका उनका किरदार उनकी ऐक्टिंग के हिसाब से मिलने लगा।
हुवा यूँ के राजेश ने कहा कि “चाहे जिसका डेमो करा लो सर! राम तो हमही बनेंगे।” मंडली प्रमुख रियाज़ सर बोले “कर पाओगे तुम? होगा तुमसे? हमेशा तो नशे में रहते हो! हज़ारों की भीड़ होगी! सिटी चैनल पे लाइव टेलिकास्ट होगा! कहीं ऊँच नीच हो गयी तो तुम्हारे बाउजी की नाक कट जाएगी!”
“कुछ भी हो रियाज़ गुरुजी! राम तो हम ही बनेंगे!” (राजेश ने बोतल में से शराब का घूँट लेते हुए कहा)
राजेश कटनी के विधायक क्राइम मास्टर गोगो का एकलौता लड़का था। शराबी, कबाबी,अय्याशी, मारपीट, लड़ाई झगड़ा, गुण्डई और लड़कियों को छेड़ना मल्लब भविष्य के एक आदर्श विधायक और वर्तमान में एक विधायक के आदर्श पुत्र होने के सारे गुण विद्दमान थे उसमें। पर इन सब से हट के दो चीज़ें और थीं जो कहानी में इंटरेस्ट लाने वाली थी।
पहली चीज़ थी ड्रामा। राजेश गब्बर सिंह का बहुत बड़ा फ़ैन था। बचपन से ही शीशे के सामने “कितने आदमी थे? और अब तेरा क्या होगा कलिया?” की प्रेक्टिस करते हुए बड़ा हुआ था और ऐक्टिंग का भूत सवार था।
दूसरी थी ज्योति। जो उसी ड्रामा मंडली की छात्रा थी। चूँकि ज्योति को सीता का रोल पहले ही मिल गया था तो राम के रोल के लिए गगन का ज़िद्दियाना लाज़मी था।
रियाज़ सर जो बरसों से सकुशल रामलीला कराते आरहे थे इस बार नर्वस हो गए। वो राम बनाना चाहते थे सुधीर को। जी हाँ सुधीर। सुधीर को बस ये जान लीजिए कि वो साक्षात शर्मा जी का लौंडा वाला पीस था। हाँ शर्मा जी का वही लड़का जिसके कारण अक्सर अपने घर पर आपको ताने और कभी कभी तो लात भी पड़ जाती है। स्कूल कोलेज में 99%+ नंबर, खेल कूद में तेंदुलकर, ऐक्टिंग में जैक स्पैरो! नहीं नहीं कैप्टेन जैक स्पैरो!
तो अंत में विधायक क्राइम मास्टर गोगो के दबाव में आकर रियाज़ साहब को राम का किरदार राजेश को देना ही पड़ गया। और सीता का किरदार मिला ज्योति को। ज्योति वही लड़की थी जिसे गगन पसंद करता था पर जब वो सामने आती तो उसके अंदर का भलमनई जाग जाता और बेचारा कुछ कह ना पाता। बस नज़रें झुका के शर्मा जाता।
रुकिए रुकिए यहाँ पे रामलीला में एक प्रेम त्रिकोणीय शृंखला की अलगय लीला रची जा रही थी। जिसमें राजेश, ज्योति और सुधीर थे। राजेश को ज्योति से प्रेम था और ज्योति को सुधीर से मोहब्बत। ख़ास बात ये कि सुधीर को इस बात की भनक भी नही थी कि ज्योति उसे मन ही मन अपना राम मानती थी। राजेश ज्योति के कारण मंडली में रोज आता और ज्योति सुधीर के कारण। चूँकि सुधीर तो शर्मा जी के लौंडे की फ़ोटोकापी था तो रोज़ टाइम से पहुँचना उसके ख़ून में था।
रिहर्सल चालू हुआ और तैयारीयों ने ज़ोर पकड़ लिया। राजेश अपनी ठाठ में लेट आता जिसके कारण ढंग से रिहर्सल भी ना हो पाती। रियाज़ सर ने ख़ुद को इतना बेवस पहले कभी ना पाया था। पिछले सत्ताईस सालों से ख़ुद लक्षमण का किरदार बख़ूबी निभाते आरहे थे रियाज़ सर। पर इस बार का लक्षमण था इस्तियाक। इस्तियाक रियाज़ साहब का छोटा बेटा था और हरमपने में राजेश की टक्कर का।
राजेश और इश्तियाक़ की ख़ूब बनती। दोनो साथ में दारू मुर्ग़ा चाँपते और लफ़ंगई करते। ये उनकी रोज़ की दिनचर्या थी। जब कभी राजेश का मूड ख़राब होता इश्तियाक़ “ज्योति भाभी ज्योति भाभी” बोल के राजेश को पिघला देता।
सीन शुरू हुआ! सब अपने अपने गेटप में थे। राजेश एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ में कमंडल लिए खड़ा था। इश्तियाक़ ने कमंडल को ओल्ड मोंक से भर दिया था। सुधीर अमरीस पुरी का नौ मुखौटा टाँगे रावण बना खड़ा था। राजेश ज्योति को देख के डाईलॉग मारता और ज्योति सुधीर को देख के।
सीन पहुँचा सीता माता के किडनैपिंग पे। आज राजेश सीता के किडनैपिंग पे उतनी ही दुखी था जितना भगवान राम हुए थे। सीन के बीच में राजेश भावुक हो था और उसकी आँख से आँसू निकलने लगे। इश्तियाक़ से देखा नही गया और उसने “ज्योति भाभी ज्योति भाभी” कह के राजेश का दिल हल्का किया और असल ज़िंदगी में भी लक्षमण साबित हुआ।
जैसे तैसे रामलीला अपने क्लाईमैक्स पे पहुँची। आज जनता बेहद हंस रही थी। नए उमर के बच्चों की रामलीला सच में एकदम नैसर्गिक थी। युद्ध भूमि में राम के भेष में राजेश और रावण के भेष में सुधीर आमने सामने थे।
राजेश कमंडल से घूँट मार मार के राक्षसों को मुक्ति दे रहा था। पर आज ज्योति रूपी सीता किड्नैप होके ख़ुश थी। आज वो रावण से छुटकारा नही पाना चाहती थी। लक्षमण राक्षसों पर निशाना साधने में व्यस्त था और विभीषण अपने विभीषणपना दिखाने का इंतज़ार कर रहा था।
रोते गाते लड़खड़ाते हुए युद्ध भूमि में राजेश ने रावण की तरफ़ पहला तीर मारा। तीर ऐसा घूमा जो कि हनुमान जी की तरफ़ जा पहुँचा। बच्चे गुदगुदा के हसने लगे। पब्लिक पेट पकड़ के ठहाके मारने लगी। लोगों को लगा इस बार कोमेडी रामलीला है। कमंडल से एक और घूट लेने के बाद राजेश ने कहा “कितने आदमी थी?” लोग फिर हसने लगे। इतने में लक्षमण में असली लाइन याद दिलाई और कहा “ज्योति भाभी ज्योति भाभी”
राजेश मुस्कुराया। ताव से तीर कमान में चढ़ाया और रावण की तरफ़ निशाना तान के बोला “तुम्हारा अंत आगया है दुष्ट” और धागा खींच के छोड़ दिया! इस बार तीर कमान से निकला ही नही। बिलकुल वैसे ही जैसे पिछली बार मोदी जी से फुस्स हुआ था। विभिसण को लगा उसका समय आगया है और उसने राम के कान में जाके कुछ खुसुर फुसुर की! राजेश फिर से मुस्कुराया और रावण की तरफ़ तीर तान के बोला
“ठायं ठायं!”
“अरी मोरी मईया! मारि डाला रे..” कहकर भईया रावण वहीं ओलर गया।
मरने से पूर्व उसने भगवान राम से क्षमा माँगी और मुक्ति के लिए आग्रह किया। राजेश ने कमंडल से चूल्लु भर पानी(मदिरा रूपी गंगाजल) निकाल रावण को पिलाया। और सुधीर वहीं खाँसते खाँसते बिहोश हो गया। रावणवा धन्य हुआ। सत्य की जीत हुई। अधर्म का नाश हुआ।
पर्दा गिरता है..
हर तरफ़ से आवाज़ आने लगी जय श्री राम! जय श्री राम। क्राइम मास्टर गोगो की आँखो में आँसू आगया। उसने मंडली के सभी सदस्यों को भेंट दी और तारीफ़ की
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बच्चे दिवाली तक ठायं ठायं करते रहे। ठायं ठायं से उनके अम्मा बाबू के पैसे भी बच गए। धुएँ वाले प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण दोनो का नाश हुआ।
रावण अधर्मी था! पापी था। कुंठित था। घमंडी था। बहुत आसान है रावण बन जाना। राम बनना मुश्किल है। असम्भव है। पता नही लोग राम पे कैसी उँगली उठा देते हैं जिन्होंने अपनी मर्यादा से परे कुछ भी नही किया। जिन्होंने हर स्थिति सम्हाली। घर, सिंहासन, वचन और पत्नी सब।
आसान होता है अपने सुख के लिए किसी की पत्नी का अपहरण करके फिर महान होने का ढोंग रचना। आसान नही है राम बन जाना। परीक्षा देना और लेना। आहुति देना और भगवान बन जाना।
बाक़ी दशहरा मुबारक।
पकड़ो पकड़ो, ठायं ठायं!
जय श्री राम जय श्री राम।
~Shubham Srivastava